सत्यजीत रे की 104वीं जयंती: उनकी कुछ यादगार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्में (Ray 104th birth anniversary unki kuch yaadgar national award film)
कोलकाता में सत्यजीत रे की 104वीं जयंती पर एक अनोखे क्राउडफंडेड स्ट्रीट म्यूज़ियम का उद्घाटन किया गया। यह नागरिकों द्वारा शुरू की गई पहल 2 मई को बिशप लेफ्रॉय रोड पर उस स्थान पर शुरू हुई जहाँ सत्यजीत रे रहते थे। यह शहर में अपनी तरह की पहली शहरी पुनरुद्धार परियोजना है, जो रे को एक सांस्कृतिक श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित है।
इस पहल को संदीप रे (सत्यजीत रे के पुत्र), वार्ड 70 के पार्षद आशीम बसु, द कोलकाता रिस्टोरर्स, और ट्राइसिस कम्युनिकेशंस ने मिलकर साकार किया।
इस परियोजना के तीन मुख्य हिस्से हैं:
रे के घर की बाहरी दीवार को स्थायी एलईडी लाइटिंग से रोशन करना,
उनके घर की बाउंड्री वॉल पर एक विशेष स्ट्रीट म्यूज़ियम बनाना,
सड़क के किनारे मौजूद CESC के बिजली बॉक्सों को सत्यजीत रे की फिल्मों से प्रेरित कला चित्रों से सजाना।
यह पहल कोलकाता में रे की विरासत को सम्मानित करने की एक अनूठी और रचनात्मक कोशिश है।
सत्यजीत रे की जयंती पर विशेष: 7 राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मों की झलक
2 मई भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महान निर्देशक, पटकथा लेखक और फिल्म निर्माता सत्यजीत रे की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को यादगार बनाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम उनकी उन फिल्मों को याद करें जिन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में सिनेमा को एक नई पहचान दी।
सत्यजीत रे भारतीय सिनेमा के ऐसे स्तंभ हैं, जिनकी फिल्में आज भी अपनी गहराई, भावनात्मकता और यथार्थवादी चित्रण के लिए याद की जाती हैं। उन्होंने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति प्राप्त की। 1992 में उन्हें उनके जीवन भर के उत्कृष्ट योगदान के लिए ऑस्कर का मानद पुरस्कार (Honorary Academy Award) भी मिला था।
यहां हम सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित सात ऐसी फिल्मों की चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया:
1. पाथेर पांचाली (1955)
IMDb रेटिंग: 8.2
सत्यजीत रे की पहली और सबसे प्रतिष्ठित फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ है। यह फिल्म भारतीय सिनेमा में यथार्थवाद की शुरुआत मानी जाती है। यह एक गरीब बंगाली परिवार और विशेष रूप से एक छोटे लड़के ‘अपु’ के जीवन की मार्मिक कहानी है।
यह फिल्म राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ बंगाली फीचर फिल्म के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर BAFTA अवॉर्ड और बोडिल अवॉर्ड जीत चुकी है। यह फिल्म रे के ‘अपु ट्रायोलॉजी’ की पहली कड़ी है और भारतीय सिनेमा को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाने में अहम भूमिका निभाती है।
2. अपराजितो (1956)
IMDb रेटिंग: 8.3
‘पाथेर पांचाली’ के बाद सत्यजीत रे ने इसका अगला भाग ‘अपराजितो’ बनाया। यह फिल्म अपु के कलकत्ता जाने और शिक्षा प्राप्त करने की यात्रा के साथ-साथ उसकी माँ की अकेली जिंदगी की मार्मिक दास्तान है।
इस फिल्म को 1957 में वेनिस फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन लायन अवॉर्ड, FIPRESCI पुरस्कार, और न्यू सिनेमा अवॉर्ड मिला। इसके अलावा इसे भारत में भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। यह फिल्म मां-बेटे के संबंधों को बेहद भावुक ढंग से प्रस्तुत करती है।
3. नायक (The Hero) – 1966
IMDb रेटिंग: 8.2
‘नायक’ सत्यजीत रे द्वारा लिखित और निर्देशित एक खास फिल्म है, जिसमें बंगाली सिनेमा के सुपरस्टार उत्तम कुमार और शर्मिला टैगोर ने मुख्य भूमिका निभाई है। यह फिल्म एक फिल्म अभिनेता के आंतरिक संघर्षों और सामाजिक छवि के टकराव को दर्शाती है।
1967 में इसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – सर्वश्रेष्ठ पटकथा का सम्मान मिला। यह फिल्म नायक के एक रेल यात्रा के दौरान आत्मनिरीक्षण पर केंद्रित है।
4. तीन कन्या (Teen Kanya) – 1961
IMDb रेटिंग: 7.9
‘तीन कन्या’ रवींद्रनाथ ठाकुर की तीन अलग-अलग कहानियों पर आधारित एक संकलन फिल्म है। इसमें तीन महिलाओं की भावनाओं, संघर्षों और जीवन की जटिलताओं को दर्शाया गया है। सत्यजीत रे ने इन तीन कहानियों को बड़े ही सुंदर और संवेदनशील तरीके से परदे पर उतारा।
यह फिल्म 1962 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – सर्वश्रेष्ठ बंगाली फीचर फिल्म से नवाजी गई। यह फिल्म साहित्य और सिनेमा के संयोग की एक अद्भुत मिसाल है।
5. सोनार केल्ला (Sonar Kella) – 1974
IMDb रेटिंग: 8.0
बच्चों के लिए बनी सबसे लोकप्रिय फिल्मों में से एक ‘सोनार केल्ला’, सत्यजीत रे की रहस्य-रोमांच शैली में एक अनूठी पेशकश है। यह फिल्म उनके बनाए जासूस फेलूदा के कारनामों पर आधारित है। इसमें सौमित्र चटर्जी ने फेलूदा की भूमिका निभाई है।
इस फिल्म को 1975 में तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुए:
• सर्वश्रेष्ठ निर्देशन
• सर्वश्रेष्ठ पटकथा
• सर्वश्रेष्ठ बंगाली फीचर फिल्म
आज भी यह फिल्म अमेज़न प्राइम वीडियो पर देखी जा सकती है और बच्चों से लेकर बड़ों तक को पसंद आती है।
6. महानगर (Mahanagar) – 1963
IMDb रेटिंग: 8.3
‘महानगर’ एक ऐसी महिला की कहानी है जो पहली बार घर से बाहर निकलकर काम करना शुरू करती है। यह फिल्म 1960 के दशक की सामाजिक परिस्थिति, महिलाओं की स्वतंत्रता और पारिवारिक बदलावों को बेहद यथार्थवादी अंदाज़ में प्रस्तुत करती है।
इस फिल्म को 1964 में बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सिल्वर बर्लिन बियर पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ निर्देशक) मिला और भारत में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – तीसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म (बंगाली) का सम्मान मिला।
7. देवी (Devi) – 1960
IMDb रेटिंग: 7.7
‘देवी’ एक मनोवैज्ञानिक नाटक है, जिसमें एक युवती को उसके ससुर द्वारा देवी का अवतार मान लिया जाता है। यह फिल्म अंधविश्वास, पितृसत्तात्मक सोच और धार्मिक कट्टरता पर करारा प्रहार करती है।
इस फिल्म में शर्मिला टैगोर, सौमित्र चटर्जी और छबी बिस्वास जैसे दमदार कलाकार हैं। फिल्म को 1961 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – सर्वश्रेष्ठ बंगाली फीचर फिल्म से नवाजा गया।
निष्कर्ष
सत्यजीत रे की फिल्में न सिर्फ मनोरंजन करती हैं, बल्कि दर्शकों को सोचने के लिए मजबूर भी करती हैं। उनकी हर फिल्म समाज, मानवीय भावनाओं और यथार्थ के इर्द-गिर्द घूमती है।
उनके योगदान को शब्दों में समेटना मुश्किल है, लेकिन उनकी फिल्मों के ज़रिए हम हर बार उनके विचारों, दृष्टिकोण और कलात्मक प्रतिभा का अनुभव कर सकते हैं।
2 मई को उनकी जयंती पर हम उन्हें नमन करते हैं और उनकी इन कालजयी फिल्मों को देखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं।
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