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भीष्म द्वादशी – भीष्म पितामह के मोक्ष का पावन पर्व
भीष्म द्वादशी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है, जिसे माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में यह पर्व 9 फरवरी को पड़ेगा। इस पावन दिन को भीष्म पितामह के वैकुंठ गमन (भगवान विष्णु के दिव्य लोक में प्रवेश) का शुभ अवसर माना जाता है। कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने कई दिनों तक शरशय्या (तीरों के बिस्तर) पर लेटकर अंतिम समय की प्रतीक्षा की थी और अंततः इसी दिन उन्होंने शरीर त्याग किया। भारत के विभिन्न हिस्सों में श्रद्धालु इस दिन उपवास, पूजा-पाठ एवं धार्मिक प्रवचनों के माध्यम से इसे श्रद्धा पूर्वक मनाते हैं।

महाभारत में भीष्म पितामह की भूमिका
भीष्म पितामह महाभारत के सबसे पूजनीय और प्रमुख पात्रों में से एक हैं। उनका असली नाम देवव्रत था, और वे राजा शांतनु और देवी गंगा के पुत्र थे। वे अपने कर्तव्य, धर्म और नैतिकता के प्रति पूर्णतः समर्पित थे, जिसके कारण उन्हें भारतीय इतिहास में अमर माना जाता है।

भीष्म प्रतिज्ञा – वो वचन जिसने उन्हें “भीष्म” बना दिया
भीष्म पितामह का जीवन उनकी महान प्रतिज्ञा के कारण प्रसिद्ध है। उन्होंने अपने पिता राजा शांतनु की इच्छाओं की पूर्ति के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य (संन्यास) और राजसिंहासन न संभालने की भीषण प्रतिज्ञा ली थी। उनकी इस अप्रतिम त्याग भावना को देखकर देवताओं ने उन्हें “भीष्म” नाम प्रदान किया, जिसका अर्थ है “जिसने भयंकर प्रतिज्ञा ली हो”।

कुरुक्षेत्र युद्ध में भीष्म की भूमिका
भीष्म पितामह कौरव सेना के प्रधान सेनापति थे। वे अजेय योद्धा थे और उनके जीवित रहते पांडवों की जीत असंभव मानी जाती थी। लेकिन, अपनी नीतियों के अनुसार उन्होंने धर्म का पालन करते हुए पांडवों को अपनी पराजय का रहस्य स्वयं बताया, जिसके बाद अर्जुन ने शिखंडी के सहयोग से उन्हें परास्त किया।

भीष्म द्वादशी का महत्व
भीष्म अष्टमी (माघ शुक्ल अष्टमी) को भीष्म पितामह ने शरीर त्यागने का निश्चय किया था, किंतु उन्होंने मृत्यु का वरण शुक्ल द्वादशी को किया। इसी कारण शुक्ल द्वादशी को “भीष्म द्वादशी” के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन को विशेष रूप से उन भक्तों के लिए शुभ माना जाता है जो भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा लेते हैं।

इस दिन के विशेष अनुष्ठान एवं परंपराएँ
भक्तगण भीष्म पितामह और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं ताकि उन्हें भीष्म जैसा दृढ़ संकल्प, शक्ति और धर्मपरायणता प्राप्त हो।
श्रद्धालु गंगा स्नान या अन्य पवित्र नदियों में स्नान कर मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं।
इस दिन विष्णु सहस्रनाम (भगवान विष्णु के 1000 नामों का पाठ) करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। यह वही स्तोत्र है जिसे भीष्म पितामह ने अपने अंतिम समय में युधिष्ठिर को सुनाया था।
उपवास (व्रत) और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन गरीबों को भोजन, वस्त्र एवं धन का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
भीष्म – समर्पण और धर्म का अमर प्रतीक
भीष्म पितामह का जीवन कर्तव्य, त्याग, भक्ति और उच्च नैतिक मूल्यों का अनुपम उदाहरण है। वे इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने उत्तरायण (जब सूर्य उत्तर की ओर गमन करता है) के प्रारंभ होने तक अपने प्राणों को रोके रखा, जो यह दर्शाता है कि एक सच्चा योगी और धर्मात्मा अपने शरीर को छोड़ने का उपयुक्त समय स्वयं चुन सकता है।

उनका संपूर्ण जीवन धर्म, निष्ठा और संकल्प की अमर गाथा है। भीष्म द्वादशी केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि यह हमें जीवन में समर्पण, त्याग और कर्तव्य के महत्व की सीख भी देता है।

इस पवित्र पर्व पर सभी भक्तों के जीवन में ज्ञान, शांति और धर्म की भावना जागृत हो – यही शुभकामना!

भीष्म द्वादशी की तिथि माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को होती है, और यह दिन विशेष रूप से दिनभर मनाया जाता है। यदि हम 2025 के हिसाब से बात करें, तो भीष्म द्वादशी 9 फरवरी को है, और इसका समय रात्रि 12 बजे तक रहेगा।

इस दिन का महत्त्व स्नान, व्रत और पूजा-पाठ के लिए पूरे दिन है, लेकिन खासतौर पर द्वादशी तिथि का प्रभाव सुबह से लेकर रात तक रहता है। यदि आप पुजा या व्रत का पालन कर रहे हैं, तो द्वादशी तिथि का समापन रात 12 बजे के बाद होगा, जब त्रयोदशी तिथि शुरू हो जाएगी।

आप इस दिन का सही फायदा उठाने के लिए पूरे दिन धार्मिक कार्य कर सकते हैं और रात्रि 12 बजे तक द्वादशी की पूजा कर सकते हैं।

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