Buddha Purnima 2025 tithi samay aur sampurna jankari

बुद्ध पूर्णिमा 2025: तिथि, समय, इतिहास, महत्व और उत्सव की संपूर्ण जानकारी (Buddha Purnima 2025 tithi samay aur sampurna jankari)

बुद्ध पूर्णिमा, जिसे बुद्ध जयंती या वैशाख पूर्णिमा भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण की स्मृति में मनाया जाता है। यह पर्व वैशाख महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अप्रैल या मई में पड़ती है। यह दिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।

📅 बुद्ध पूर्णिमा 2025: तिथि और समय
वर्ष 2025 में बुद्ध पूर्णिमा सोमवार, 12 मई को मनाई जाएगी। यह गौतम बुद्ध की 2587वीं जयंती होगी। ड्रिक पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 11 मई को रात 8:01 बजे प्रारंभ होकर 12 मई को रात 10:25 बजे समाप्त होगी।

🕉️ इतिहास और पृष्ठभूमि
गौतम बुद्ध का जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनकी माता का नाम महामाया देवी और पिता का नाम शुद्धोधन था, जो शाक्य वंश के राजा थे। बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन त्यागकर सत्य की खोज में निकल पड़े। छह वर्षों की कठोर तपस्या के बाद, उन्होंने बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए 35 वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त किया। 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में उनका महापरिनिर्वाण हुआ।

🌕 बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
बुद्ध पूर्णिमा तीन महत्वपूर्ण घटनाओं—जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण—की स्मृति में मनाई जाती है। यह दिन बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आत्मनिरीक्षण, ध्यान और करुणा के अभ्यास का अवसर होता है। बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग प्रमुख हैं, जो जीवन के दुःखों से मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।

🌍 विभिन्न देशों में उत्सव की परंपराएँ
भारत और नेपाल: बोधगया में महाबोधि मंदिर को सजाया जाता है, और बोधि वृक्ष के नीचे विशेष प्रार्थनाएँ होती हैं। लुंबिनी में भी भव्य समारोह आयोजित किए जाते हैं।

श्रीलंका: घरों और सड़कों को दीपों और कागज की लालटनों से सजाया जाता है। भक्ति गीत, पंडाल और बुद्ध के जीवन की कहानियों को दर्शाने वाले प्रकाश प्रदर्शन होते हैं।

चीन: बुद्ध की मूर्ति पर सुगंधित जल से स्नान कराने की रस्म निभाई जाती है, जो उनके जन्म के समय की घटनाओं की याद दिलाती है।

जापान: यहाँ 8 अप्रैल को ‘हना मात्सुरी’ (फूलों का त्योहार) के रूप में बुद्ध का जन्मदिन मनाया जाता है। मंदिरों में फूलों से सजावट होती है और मीठी चाय से बुद्ध की मूर्ति का स्नान कराया जाता है।

दक्षिण कोरिया: ‘योनदेंघोए’ (Yeondeunghoe) नामक लोटस लालटेन महोत्सव आयोजित होता है, जिसमें हजारों रंग-बिरंगी लालटेन सड़कों और मंदिरों में सजाई जाती हैं।

🧘‍♂️ परंपराएँ और अनुष्ठान
ध्यान और प्रार्थना: बौद्ध अनुयायी ध्यान, प्रार्थना और बुद्ध के उपदेशों का पाठ करते हैं।

दान और सेवा: जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और अन्य आवश्यक वस्तुएँ दान की जाती हैं।

पशु मुक्ति: कई स्थानों पर पक्षियों और जानवरों को पिंजरे से मुक्त किया जाता है, जिसे अच्छे कर्म के रूप में माना जाता है।

मंदिरों की सजावट: मंदिरों को दीपों, फूलों और झंडियों से सजाया जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा न केवल गौतम बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं की स्मृति में मनाया जाता है, बल्कि यह दिन उनके उपदेशों और शिक्षाओं को आत्मसात करने का भी अवसर प्रदान करता है। यह पर्व हमें शांति, करुणा और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है।

गौतम बुद्ध का चतुर्सत्य (चार आर्य सत्य) और अष्टांगिक मार्ग

गौतम बुद्ध ने अपने ज्ञान (बोधि) प्राप्ति के बाद जो सबसे पहला उपदेश दिया, वह “धर्मचक्र प्रवर्तन” कहलाता है। इसमें उन्होंने संसार के दुःख और उसके निवारण का मार्ग बताया, जिसे चार आर्य सत्य (चतुर्सत्य) कहा जाता है। इन आर्य सत्यों के आधार पर उन्होंने अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path) की व्याख्या की, जो मोक्ष की ओर ले जाता है।

🌼 चतुर्सत्य (चार आर्य सत्य)
बुद्ध के अनुसार संसार में हर प्राणी दुःख से ग्रस्त है, और उस दुःख का कारण तथा समाधान समझकर व्यक्ति निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त कर सकता है। ये चार आर्य सत्य हैं:

दुःख (Dukkha)
संसार में जीवन दुःखों से भरा हुआ है — जन्म, मृत्यु, रोग, वृद्धावस्था, वियोग, इच्छाओं की पूर्ति न होना आदि सभी दुःख हैं।

“सब कुछ अनित्य है, और जो अनित्य है, वह दुःख का कारण है।”

दुःख समुदय (Samudaya)
दुःख का कारण तृष्णा (तन्हा) है — इच्छाएँ, लालसा, मोह, वासना, भौतिक सुख की चाह। यह तृष्णा जन्म-जन्मांतर के चक्र का कारण बनती है।

दुःख निरोध (Nirodha)
जब तृष्णा का अंत होता है, तब दुःखों का भी अंत हो जाता है। इसे निरोध या निर्वाण कहते हैं — जहाँ जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।

दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा (Magga)
दुःख के निवारण के लिए जो मार्ग है, वह है अष्टांगिक मार्ग — सही जीवन जीने की पद्धति जो व्यक्ति को निर्वाण तक ले जाती है।

🕉️ अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path)
बुद्ध ने बताया कि दुःख से मुक्ति पाने का उपाय है मध्यम मार्ग (Middle Path), जिसे अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है। इसके आठ अंग हैं:

सम्यक दृष्टि (Right View)
संसार के यथार्थ को जानना — चार आर्य सत्य को समझना और जीवन के परिवर्तनशील स्वभाव को पहचानना।

सम्यक संकल्प (Right Intention)
अहिंसा, त्याग और करुणा से युक्त सोच रखना; दूसरों का भला सोचने की भावना।

सम्यक वाक् (Right Speech)
झूठ, निंदा, कटु शब्दों और व्यर्थ की बातों से बचना। सत्य, प्रिय और उपयोगी वाणी बोलना।

सम्यक कर्म (Right Action)
हत्या, चोरी, व्यभिचार जैसे अनैतिक कार्यों से बचना और नैतिक जीवन जीना।

सम्यक आजीविका (Right Livelihood)
ऐसा व्यवसाय या नौकरी करना जो दूसरों को नुकसान न पहुँचाए — हथियार, नशा, मांस, आदि के व्यापार से बचना।

सम्यक प्रयास (Right Effort)
बुरे विचारों को रोकने और अच्छाइयों को विकसित करने के लिए निरंतर प्रयत्न करना।

सम्यक स्मृति (Right Mindfulness)
वर्तमान क्षण में सजग रहना — शरीर, मन, भावनाओं और विचारों की सतर्कता।

सम्यक समाधि (Right Concentration)
ध्यान और मानसिक एकाग्रता द्वारा आत्मिक शांति और बोध प्राप्त करना।

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