कालिधर लापता रिव्यू (हिंदी में): अकेलेपन और अपनापन की एक सच्ची, लेकिन अधूरी कहानी(Kaalidhar Laapata review hindi mai,akelapan aur apnapan ki ek sachhi,lekin adhuri kahani)
निर्देशक: मधुमिता
मुख्य कलाकार: अभिषेक बच्चन, दैविक भागेला, मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब
प्लेटफॉर्म: ज़ी5
भाषा: हिंदी
रेटिंग: ★★★☆☆ (3/5)
परिचय:
‘कालिधर लापता’ एक ऐसी फिल्म है जो जीवन के उस पहलू को छूने की कोशिश करती है जहां अकेलापन, उपेक्षा और भावनात्मक जुड़ाव की अहमियत सामने आती है। यह फिल्म तमिल फिल्म ‘केडी ए करुप्पु दुरई’ का हिंदी रीमेक है, जिसे उसी की निर्देशक मधुमिता ने निर्देशित किया है।
कहानी मध्यप्रदेश की पृष्ठभूमि में सेट की गई है, जहां एक उम्रदराज व्यक्ति की मुलाकात एक नन्हे अनाथ बच्चे से होती है और दोनों के बीच एक अनोखा रिश्ता बनता है। हालांकि फिल्म दिल को छूती है, पर कुछ अहम भावनात्मक हिस्सों में वह उतनी गहराई तक नहीं पहुंच पाती जितनी पहुंचनी चाहिए थी।
कहानी का सार:
फिल्म की शुरुआत होती है कालिधर (अभिषेक बच्चन) से, जो एक मिडिल एज व्यक्ति है और स्मृति लोप (memory loss) से पीड़ित है। परिवार को उसकी दवाओं और इलाज का बोझ सहन नहीं होता और वे उसे छोड़ने की योजना बनाते हैं। जब कालिधर अपने ही भाई-बहनों को उसे कुंभ मेले में छोड़ देने की बात करते सुनता है, तो उसका दिल टूट जाता है। वह घर से भाग जाता है और एक बस में चढ़कर अंजाने सफर पर निकल पड़ता है।
इस सफर में वह एक गांव के मंदिर में रात बिताता है, जहां उसकी मुलाकात होती है बल्लू (दैविक भागेला) से — एक 8 साल का अनाथ बच्चा जो जीवन से भरपूर है और नटखट भी। शुरू में उनके बीच तकरार होती है, पर धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के जख्मों पर मरहम बन जाते हैं।
बल्लू उसे ‘केडी’ का नाम देता है और उसकी एक बकेट लिस्ट को पूरा करने की ठान लेता है। उस लिस्ट में शामिल हैं —
• जिंदगीभर का बिरयानी
• बाइक की सवारी
• सूट पहनना
• बारात में नाचना
• शराब (अंग्रेज़ी वाली) चखना
• और अपनी पहली प्रेमिका मीरा से मिलना
भावनात्मक पहलू और किरदारों की मजबूती:
फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है कालिधर और बल्लू के बीच का रिश्ता। उनका प्यार, उनका साथ और उनका दर्द — ये सब कुछ दिल को छू जाता है। एक सीन में जब डॉक्टर बल्लू से पूछता है कि “ये आपके क्या लगते हैं?”, तो बल्लू का जवाब सिर्फ एक शब्द होता है — “सबकुछ”। यही वो भाव है जो फिल्म को आत्मा देता है।
अभिषेक बच्चन ने एकदम सधी हुई और मर्मस्पर्शी परफॉर्मेंस दी है। वे अपने किरदार को ओवरड्रामैटिक नहीं बनाते, बल्कि सादगी और दर्द के साथ निभाते हैं। वहीं, दैविक भागेला अपने अभिनय से सबका दिल जीत लेते हैं। वह इतने स्वाभाविक और प्यारे लगते हैं कि उनके दृश्य पूरी फिल्म में जान डालते हैं।
कमियां जो खलती हैं:
हालांकि फिल्म की बुनियाद मजबूत है, लेकिन कई जगहों पर वह कमजोर पड़ती है।
• सबसे बड़ी कमी यह है कि कालिधर की मानसिक स्थिति को बीच में छोड़ दिया गया है। शुरुआत में उसे मेमोरी लॉस और भ्रम की स्थिति में दिखाया गया है, लेकिन बाद में बिना किसी स्पष्ट बदलाव के वह नॉर्मल होकर काम करने लगता है।
• कुछ इमोशनल सीन, जैसे रेलवे स्टेशन पर KD और बल्लू के बीच एक भावुक विदाई, की उम्मीद की जाती है, लेकिन ऐसे सीन को या तो छोड़ा गया या उतना प्रभावशाली नहीं बनाया गया।
• ज़ीशान अय्यूब जैसे प्रतिभाशाली अभिनेता का किरदार अधूरा और सतही लगता है। उनकी भूमिका कहानी में कोई ठोस योगदान नहीं देती, जिससे उनकी मौजूदगी बेकार सी लगती है।
फिल्म की तकनीकी विशेषताएं:
• लोकेशन और सिनेमैटोग्राफी: फिल्म की शूटिंग मध्यप्रदेश के गांवों में हुई है, जो कहानी को ग्रामीण और यथार्थवादी स्पर्श देती है। मंदिर, खेत, गलियां — सब कुछ असल लगता है।
• संगीत और पृष्ठभूमि स्कोर: म्यूजिक कहानी के साथ मेल खाता है, लेकिन ऐसा कोई गाना नहीं जो लंबे समय तक याद रहे।
• एडिटिंग और पेसिंग: शुरुआती आधे घंटे में फिल्म की गति काफी धीमी है। लेकिन जैसे ही KD और बल्लू की दोस्ती की शुरुआत होती है, फिल्म में जान आ जाती है।
क्या देखनी चाहिए यह फिल्म?
‘कालिधर लापता’ एक दिल से कही गई कहानी है, जो रिश्तों की गर्माहट, उपेक्षा के दर्द और दोस्ती की ताकत को दिखाती है। यह फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे कभी-कभी अजनबी, परिवार से बढ़कर हो जाते हैं।
हालांकि इसमें कुछ खामियां हैं — जैसे भावनात्मक गहराई की कमी और कुछ अधूरी कहानियां — लेकिन फिर भी यह फिल्म एक सादगी से बुनी गई मानवीय कथा है, जिसे एक बार ज़रूर देखा जा सकता है।
‘कालिधर लापता’ एक संवेदनशील, दिल को छूने वाली फिल्म है जो ज़िंदगी के हाशिए पर जी रहे दो लोगों के रिश्ते को खूबसूरती से दिखाती है। इसमें हास्य भी है, दर्द भी और उम्मीद भी।
यदि आप भावनात्मक और दिल को छू जाने वाली कहानियों के शौकीन हैं, तो ‘कालिधर लापता’ आपके लिए एक सार्थक अनुभव हो सकता है — भले ही यह पूरी तरह से परिपूर्ण न हो।
अंतिम रेटिंग: ⭐⭐⭐🌠 (3.5/5)