“मां फिल्म समीक्षा: जब एक माँ बनी काली अपनी बेटी को बचाने के लिए – काजोल की दमदार वापसी पौराणिक हॉरर में”(Maa Movie Review in Hindi: Kajol as Fierce Mother in Mythological Horror Drama)
फिल्म समीक्षा: ‘मां’ – जब एक माँ बन जाती है काली, बेटी को बचाने के लिए उठाती है अस्त्र |
“मां” फिल्म समीक्षा:
निर्देशक: विशाल फुरिया
मुख्य कलाकार: काजोल, इंद्रनील सेनगुप्ता, रोनित रॉय, खेरिन शर्मा, रूपकथा चक्रवर्ती
अवधि: लगभग 2 घंटे 10 मिनट
रिलीज़ डेट: 27 जून 2025
भाषा: हिंदी
शैली: पौराणिक हॉरर ड्रामा
कहानी की पृष्ठभूमि: मां या महाकाली?
“मां” एक ऐसी फिल्म है जो मातृत्व, पौराणिकता और भय के त्रिकोण में घूमती है। यह कहानी है अंबिका (काजोल) की, जो एक आधुनिक महिला है लेकिन परिस्थितियाँ उसे एक महाशक्ति का रूप लेने के लिए मजबूर कर देती हैं। अंबिका अपनी 12 वर्षीय बेटी श्वेता (खेरिन शर्मा) की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
अंबिका और उसके पति शुवंकर (इंद्रनील सेनगुप्ता) ने अपने अतीत की भयावह पारिवारिक सच्चाइयों को बेटी से छिपा रखा है। लेकिन एक दर्दनाक घटना के बाद मां-बेटी को बंगाल के चंद्रपुर गांव में स्थित अपने पुश्तैनी हवेली लौटना पड़ता है। वहीं से शुरू होती है एक ऐसी यात्रा जहां अंधविश्वास, पौराणिक रहस्य और डर का साया उन्हें घेर लेता है।
कहानी की जड़ें: चंद्रपुर का श्राप
फिल्म की कहानी 40 साल पुरानी एक काली पूजा की रात से शुरू होती है, जब एक ज़मींदार परिवार में जुड़वा बच्चों का जन्म होता है—एक लड़का और एक लड़की। जहां लड़के के जन्म पर जश्न होता है, वहीं नवजात लड़की की हत्या उसी रात हवेली के पीछे एक विशाल वटवृक्ष के नीचे कर दी जाती है। इसी से जन्म लेता है एक श्राप जो गांव की किशोरियों को आज भी अपनी चपेट में लेता है।
श्राप के कारण गांव की युवा लड़कियां एक रहस्यमयी जंगल में जाकर गायब हो जाती हैं और कुछ दिनों बाद बेहोशी की हालत में लौटती हैं—बिना यह जाने कि उनके साथ क्या हुआ।
कहानी का उत्थान: जब मां बनती है देवी
जब शुवंकर अपने पिता की मृत्यु के बाद गांव लौटता है, तो वह हवेली को बेचने का निर्णय लेता है। लेकिन इससे पहले कि वह सौदा पूरा कर सके, उसकी रहस्यमयी मौत हो जाती है। इसके बाद गांव के मुखिया (Ronit Roy) अंबिका को बुलाते हैं ताकि सौदे को पूरा किया जा सके।
अंबिका और श्वेता गांव लौटते हैं, लेकिन वहां उनका सामना उन भूतिया शक्तियों से होता है जो हवेली और पूरे गांव पर हावी हैं। पुरानी हवेली की दीवारों के बीच छिपे अतीत, बंद पड़ा काली मंदिर और जंगल के भीतर छुपा दैत्य—ये सभी मिलकर एक ऐसा रहस्य रचते हैं जिसे सुलझाना आसान नहीं।
अंततः जब अंबिका की बेटी श्वेता पर वही श्राप मंडराने लगता है, तो वह अपनी सीमाओं को पार कर देवी काली का रूप धारण कर लेती है। यही फिल्म का भावनात्मक और शक्तिशाली शिखर है—मां के प्रेम और शक्ति की पराकाष्ठा।
अभिनय: काजोल की दमदार वापसी
यह फिल्म पूरी तरह काजोल की है। सात साल बाद उनकी सिल्वर स्क्रीन पर वापसी ‘Helicopter Eela’ के बाद एक दमदार पौराणिक किरदार के रूप में हुई है। उन्होंने अंबिका के रूप में एक मां की चिंता, संघर्ष और अंत में देवी में रूपांतरण को पूरी गहराई से निभाया है।
इंद्रनील सेनगुप्ता ने शुवंकर के रूप में सीमित लेकिन अहम भूमिका निभाई है। रोनित रॉय ने गांव के मुखिया के रूप में अच्छा काम किया है। खेरिन शर्मा और रूपकथा चक्रवर्ती, जो फिल्म में किशोरियों की भूमिका निभा रही हैं, खासकर खौफ के पलों में असर छोड़ती हैं।
तकनीकी पक्ष: VFX और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और वीएफएक्स इसकी सबसे मजबूत कड़ी हैं। काली मंदिर के धुंधले दृश्य, हवेली के अंधेरे गलियारे, जंगल की रहस्यमय छाया—ये सभी मिलकर दर्शकों को कुछ देर के लिए डर की अनुभूति जरूर कराते हैं।
विशाल फुरिया, जिन्होंने पहले मराठी हॉरर फिल्म ‘Lapachhapi’ और उसकी हिंदी रीमेक ‘छोरी’ बनाई थी, उन्होंने ‘मां’ में तकनीकी रूप से काफी कुछ सही करने की कोशिश की है, लेकिन पटकथा की कमजोरी फिल्म को पूरी तरह से बांधे रखने में नाकाम रही।
कहानी की कमज़ोरियां: विचारों की बिखराव
फिल्म एक साथ कई थीम को पकड़ने की कोशिश करती है—मातृत्व, पौराणिकता, नारी शक्ति, सामाजिक कुरीतियाँ और हॉरर। लेकिन यही विविधता अंततः इसकी कमजोरी बन जाती है। कहीं यह एक धार्मिक फैंटेसी दिखती है, तो कहीं डरावनी परियों की कहानी, तो कहीं नारी शक्ति की प्रतीकात्मक व्याख्या। पटकथा अपने विषयों को जोड़ने में असमर्थ रहती है और फिल्म बिखर जाती है।
सारांश: देखना चाहिए या नहीं?
“मां” फिल्म एक प्रयोग है—मातृत्व को देवी काली की शक्ति से जोड़ने का प्रयास। काजोल के अभिनय, प्रभावी सिनेमैटोग्राफी और पौराणिकता की नई व्याख्या फिल्म को देखने लायक बनाते हैं, लेकिन कमजोर पटकथा, असमंजसपूर्ण कहानी और दिशा की कमी इसे एक अद्भुत फिल्म बनने से रोकती है।
यह फिल्म केवल काजोल के प्रशंसकों और पौराणिक हॉरर में रुचि रखने वालों के लिए उपयुक्त है। जो दर्शक एक सशक्त, भावनात्मक और स्पष्ट रूप से निर्देशित कहानी की तलाश में हैं, उन्हें यह फिल्म अधूरी लग सकती है।
रेटिंग: ⭐⭐⭐ (5 में से 3 स्टार)
सिफारिश: काजोल के फैन हैं, तो जरूर देखें। डर और देवी के दर्शन की तलाश है, तो एक बार देख सकते हैं। लेकिन एक ठोस पटकथा की उम्मीद न रखें।