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Mahaveer jayanti ahinsha aur atmagyan ka parba itihas ,mahatva sandesh

महावीर जयंती: अहिंसा और आत्मज्ञान का पर्व,महावीर जयंती का इतिहास, महत्व और संदेश (Mahaveer jayanti ahinsha aur atmagyan ka parba itihas ,mahatva sandesh)
महावीर जयंती 2025: भगवान महावीर के 2623वें जन्मोत्सव का आध्यात्मिक पर्व

महावीर जयंती जैन धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह पर्व भगवान महावीर के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है, जो जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। उन्होंने अपने जीवन में सत्य, अहिंसा, करुणा और त्याग का संदेश पूरे विश्व में फैलाया।

भारत एक ऐसा देश है जहाँ धर्म, आस्था और संस्कृति का गहरा संबंध है। इन्हीं महान परंपराओं में से एक है महावीर जयंती, जो जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती के रूप में मनाई जाती हैवर्ष 2025 में यह पर्व गुरुवार, 10 अप्रैल को मनाया जाएगा। यह दिन जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन महान तपस्वी, अहिंसा के पुजारी और मोक्ष के मार्गदर्शक भगवान महावीर का जन्म हुआ था।

तिथि और पंचांग के अनुसार जानकारी
द्रिक पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि का आरंभ 9 अप्रैल 2025 को रात्रि 10:55 बजे से हो रहा है, और इसका समापन 11 अप्रैल को प्रातः 1:00 बजे होगा। अतः पर्व का वास्तविक अनुष्ठान और व्रत 10 अप्रैल को किया जाएगा। यह दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है, जो भगवान महावीर के जन्म का स्मरण कराता है।

भगवान महावीर का जीवन परिचय
भगवान महावीर का जन्म ईसा पूर्व 599 में वर्धमान नाम से हुआ था। उनका जन्म वैशाली (वर्तमान बिहार राज्य) के एक क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और माता त्रिशला के घर हुआ था। वह इक्ष्वाकु वंश के थे और एक समृद्ध, रॉयल परिवेश में पले-बढ़े। जन्म के समय माता त्रिशला ने 16 शुभ स्वप्न देखे थे, जिनका अर्थ यह लगाया गया कि जन्म लेने वाला बालक महान संत और आध्यात्मिक गुरु बनेगा।

आध्यात्मिक झुकाव और सन्यास
राजसी सुखों में पले-बढ़े वर्धमान बचपन से ही शांत स्वभाव और दयालुता के प्रतीक थे। उन्हें बचपन से ही आत्मज्ञान और सत्य की खोज की जिज्ञासा थी। जब वे 30 वर्ष के हुए, तब उन्होंने सांसारिक जीवन को त्याग दिया और सन्यास धारण कर लिया। उन्होंने सभी भौतिक सुख-सुविधाओं को छोड़कर एक दीर्घ तपस्या और ध्यान का मार्ग अपनाया।

कठोर तप और केवलज्ञान की प्राप्ति
भगवान महावीर ने 12 वर्षों तक कठोर तप किया। इस दौरान उन्होंने मौन व्रत, उपवास, अहिंसा और ध्यान का पालन किया। वह नग्न रहकर तपस्या करते थे और जंगल-जंगल भटकते थे। इस कठोर साधना और आत्मसंयम के परिणामस्वरूप उन्होंने केवलज्ञान (असीम ज्ञान) प्राप्त किया और वे तीर्थंकर बन गए। तीर्थंकर वह आत्मा होती है जो संसार के बंधनों से मुक्त होकर अन्य जीवों को भी मोक्ष का मार्ग दिखाती है।

महावीर स्वामी का उपदेश और सिद्धांत
भगवान महावीर ने “अहिंसा परमो धर्म:” का महान सिद्धांत दुनिया को दिया। उनका जीवन सत्य, करुणा, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह (संपत्ति का त्याग) जैसे सिद्धांतों पर आधारित था। उन्होंने किसी भी जीव के प्रति हिंसा को सबसे बड़ा पाप माना और सर्व जीवों के कल्याण की भावना को सर्वोच्च धर्म बताया।

उन्होंने समाज को जाति, वर्ण, लिंग और वर्ग भेदभाव से ऊपर उठकर समता और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया। उनके उपदेशों ने केवल जैन धर्म को नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति को शांति और सद्भाव का मार्ग दिखाया।

मोक्ष की प्राप्ति
भगवान महावीर ने जीवन के अंतिम वर्षों में अनेक स्थानों की यात्रा की और जैन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने अनेक शिष्यों को दीक्षा दी, जिनमें गणधर (मुख्य शिष्य) भी शामिल थे। अंततः 72 वर्ष की आयु में, उन्होंने पावापुरी (बिहार) में दीपावली के दिन मोक्ष प्राप्त किया। यह दिन जैन धर्म में निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

महावीर जयंती का उत्सव
महावीर जयंती पर जैन समाज में विशेष उल्लास और श्रद्धा का वातावरण होता है। इस दिन देश के कोने-कोने में जैन मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है। सुबह-सुबह भगवान महावीर की विशेष पूजा और अभिषेक (जल व दूध से स्नान) किया जाता है। कल्याणक पूजा, आरती, प्रवचन, धार्मिक यात्राएं, और शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। जैन अनुयायी इस दिन व्रत, दान, और सत्य व अहिंसा का पालन करते हैं।

बच्चों और युवाओं को भगवान महावीर के जीवन से प्रेरित करने के लिए नाट्य प्रस्तुति, चित्रकला प्रतियोगिता, और धर्म चर्चा जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कई जैन संगठन इस दिन अनाथालयों, अस्पतालों और गरीब बस्तियों में दान व सेवा कार्य भी करते हैं।

महावीर जयंती का महत्व
आज के युग में जब हिंसा, स्वार्थ और भौतिक लालच ने मानवता को ग्रसित कर लिया है, भगवान महावीर का जीवन और उनके सिद्धांत और भी प्रासंगिक हो गए हैं। उनकी शिक्षाएं न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों की स्थापना में भी सहायक हैं।

महावीर स्वामी का संदेश है कि अगर हम अपने जीवन में अहिंसा, सत्य, करुणा और अपरिग्रह जैसे मूल्यों को आत्मसात करें, तो न केवल हम व्यक्तिगत रूप से सुखी हो सकते हैं, बल्कि एक शांतिपूर्ण और समरस समाज का निर्माण कर सकते हैं।

महावीर जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक जागरण का अवसर है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि सच्चा धर्म सेवा, सहनशीलता, और आत्म-परिष्कार में है। भगवान महावीर की शिक्षाएं आज भी उतनी ही उपयोगी हैं जितनी 2600 साल पहले थीं। इस महावीर जयंती पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि उनके बताए मार्ग पर चलकर अपने जीवन को भी सार्थक बनाएं।

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