Mumbra Local Train Tragedy: A Heartbreaking Tale of Overcrowding, Negligence, and Systemic Failure

मुंब्रा लोकल ट्रेन हादसा: भीड़, लापरवाही और सिस्टम की चूक की दर्दनाक कहानी (Mumbra Local Train Tragedy: A Heartbreaking Tale of Overcrowding, Negligence, and Systemic Failure)

मुंब्रा लोकल ट्रेन हादसा: भीड़, लापरवाही और सिस्टम की चूक की दर्दनाक कहानी
सोमवार सुबह महाराष्ट्र के ठाणे जिले में एक बेहद दर्दनाक हादसा हुआ, जिसने मुंबई लोकल की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। करीब 9 बजे के आसपास, छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) से कसरा की ओर जा रही एक तेज़ लोकल ट्रेन जब मुंब्रा और दीवा स्टेशन के बीच थी, उसी दौरान भीड़ के कारण ट्रेन से लटक रहे यात्रियों की दूसरे ट्रैक पर विपरीत दिशा से आ रही ट्रेन से टक्कर हो गई। इस दुर्घटना में कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए। यह हादसा सिर्फ एक तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि मुंबई लोकल में वर्षों से अनदेखी जा रही समस्याओं की परिणति थी।

हादसे के वक्त मौजूद चश्मदीदों का कहना है कि दोनों ओर की ट्रेनों में भारी भीड़ थी। दरवाजों पर खड़े यात्रियों की एक-दूसरे से टकरा जाने की वजह से लोग ट्रैक पर गिर पड़े। शिवा शेरवाई नाम के एक स्थानीय निवासी ने बताया, “मैं प्लेटफॉर्म पार कर रहा था तभी दोनों ट्रेनों की आवाज आई। तेज़ रफ्तार में दोनों ट्रेनें एक-दूसरे के पास से गुज़रीं और कुछ ही सेकंड में कई लोग पटरी पर गिरे। चारों ओर खून और चीख-पुकार मच गई थी।”

हादसे के तुरंत बाद रेलवे पुलिस, ठाणे प्रशासन और एम्बुलेंस घटनास्थल पर पहुंची। वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अनिल शिंदे ने बताया कि घटना की सूचना मिलते ही पुलिस टीम 9:15 बजे मौके पर पहुंच गई थी। वहां उन्होंने कम से कम सात लोगों को घायल अवस्था में और पांच को मृत पाया। सभी को तत्काल इलाज के लिए पास के छत्रपति शिवाजी महाराज अस्पताल, कलवा और ठाणे सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। गंभीर रूप से घायल दो लोगों को जुपिटर हॉस्पिटल ले जाया गया, जबकि कुछ घायलों ने खुद भी निजी अस्पतालों का रुख किया।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हादसे को “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण” बताया और मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना प्रकट की। फडणवीस ने कहा, “मुंब्रा और दीवा स्टेशन के बीच लोकल ट्रेन से गिरने के इस हादसे ने हमें झकझोर कर रख दिया है। घायलों को तुरंत चिकित्सा सहायता पहुंचाई गई है और रेलवे ने हादसे की जांच शुरू कर दी है।”

इस घटना के बाद रेलवे प्रशासन की नींद टूटी है। केंद्रीय रेलवे बोर्ड ने यह निर्णय लिया है कि अब से मुंबई उपनगरीय क्षेत्र के लिए बन रही सभी ट्रेनों में स्वचालित दरवाज़े लगाए जाएंगे, ताकि कोई भी चलती ट्रेन में दरवाज़े पर खड़ा न रह सके। इसके अलावा, वर्तमान में सेवा में चल रही ट्रेनों में भी इस तकनीक को जोड़ने की योजना बनाई जा रही है। रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस हादसे ने संकेत दे दिया है कि अब “ओपन डोर” संस्कृति को खत्म करना अनिवार्य हो गया है।

लेकिन सवाल यह उठता है कि इतने वर्षों से इस समस्या को नजरअंदाज क्यों किया गया? मुंबई की लोकल ट्रेनें, जिन्हें यहां की ‘लाइफलाइन’ कहा जाता है, हर दिन लाखों यात्रियों को ढोती हैं। लेकिन भीड़, धीमी सेवाएं, अधूरी ढांचागत सुविधाएं और कम कोच की संख्या जैसे मुद्दे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। लोग मजबूरी में फुटबोर्ड पर लटकते हैं, क्योंकि उन्हें समय पर अपने गंतव्य पर पहुंचना होता है। इन स्थितियों में ऐसी दुर्घटनाएं समय की बात थीं।
राजनीतिक प्रतिक्रिया भी इस हादसे के बाद तेज हो गई है। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकल ने कहा, “ये मौतें हादसे नहीं, बल्कि सरकार की लापरवाही का नतीजा हैं। बीते 11 सालों से मुंबईवासियों को केवल झूठे वादे और घोषणाएं सुनने को मिल रही हैं।” उन्होंने मृतकों के परिजनों को ₹25 लाख मुआवज़ा और रेल मंत्री से इस्तीफे की मांग की।

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने हादसे के लिए ‘प्रवासी बोझ’ को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि “मुंबई अब संभालने की स्थिति में नहीं है। अगर भीड़ और लापरवाही पर नियंत्रण नहीं हुआ तो ऐसे हादसे बार-बार होंगे।”
इस हादसे की एक और चौंकाने वाली बात यह है कि मृतकों में से एक सरकारी रेलवे पुलिस का जवान भी शामिल था, जो ड्यूटी पर जा रहा था। मृतकों की पहचान केतन सरोज (22), विक्की मुख्यद सहित पांच लोगों के रूप में हुई है, जबकि घायलों में से कुछ की हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है।

रेलवे अधिकारियों का दावा है कि हादसे की जांच एक उच्चस्तरीय समिति द्वारा की जा रही है और आने वाले समय में ट्रेनों की स्पीड, सिग्नलिंग और सुरक्षा उपायों में सुधार किए जाएंगे। लेकिन इन दावों पर भरोसा करना लोगों के लिए मुश्किल हो गया है क्योंकि हर हादसे के बाद वादे किए जाते हैं, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं बदलता।
इस बीच, इस हादसे के चलते मुंबई की लोकल सेवाएं भी बुरी तरह प्रभावित हुईं। कई रूटों पर ट्रेनें देर से चलीं, लोगों की आवाजाही में बाधा आई, और नाराज यात्रियों ने सोशल मीडिया पर प्रशासन की जमकर आलोचना की।

मुंब्रा ट्रेन हादसा केवल एक तकनीकी दुर्घटना नहीं है, यह भारत की सबसे व्यस्त रेल व्यवस्था की कमजोरियों की प्रतीक है। जब तक सिस्टम में ठोस बदलाव नहीं होते, जब तक सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती, तब तक ‘मुंबई लोकल’ जैसी लाइफलाइन हर दिन किसी ना किसी को अपनी कीमत चुकाने पर मजबूर करती रहेगी।
अब समय आ गया है कि सरकार और रेलवे मिलकर भीड़ प्रबंधन, तकनीकी सुधार और जनसुरक्षा को लेकर ठोस और तेज़ कदम उठाएं। क्योंकि अगर अब भी नहीं चेते, तो अगली त्रासदी किसी और की बारी हो सकती है — और तब शायद माफी या मुआवज़ा भी काफी न हो।

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