Nadaaniyan movie reviw style jada kahani kam

Nadaaniyan movie reviw style jada kahani kam
“नादानियां: स्टाइल ज्यादा, कहानी कम!

‘नादानियां’ रिव्यू: खोखले कथानक और सतही रोमांस के बीच इब्राहिम अली खान और खुशी कपूर की नाकाम कोशिश
नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई धर्मेटिक एंटरटेनमेंट द्वारा निर्मित फिल्म ‘नादानियां’, युवा रोमांस और सामाजिक वर्गों के टकराव की पृष्ठभूमि पर बनी एक हल्की-फुल्की लेकिन बेहद सतही रोमांटिक-कॉमेडी है। इस फिल्म में इब्राहिम अली खान और खुशी कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं, लेकिन कमजोर पटकथा और उथली कहानी के कारण उनका प्रदर्शन प्रभावी नहीं बन पाता।

फिल्म की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसकी कहानी कृत्रिम और बनावटी लगती है, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ने में विफल रहती है। निर्देशक शौना गौतम की यह पहली फिल्म है, और इसे रीवा रज़दान कपूर, इशिता मोइत्रा और जहान हांडा ने लिखा है। हालांकि फिल्म कुछ क्षणों में थोड़ी जीवंत दिखती है, लेकिन इसकी कहानी बेहद पूर्वानुमेय (predictable) और सतही बनी रहती है।

कहानी का आधार: ऊपरी चमक-दमक के पीछे कुछ भी ठोस नहीं
फिल्म की कहानी दिल्ली के एक एलिट स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के इर्द-गिर्द घूमती है, जहां यूनिफॉर्म का कोई नियम नहीं है और हाई-सोसाइटी के बच्चे खुले माहौल में पढ़ते हैं। यहीं पर एक अल्पकालिक, नकली रोमांस शुरू होता है, जो आगे चलकर गंभीर भावनात्मक रंग लेने की कोशिश करता है, लेकिन कमजोर पटकथा के कारण प्रभावी नहीं बन पाता।

फिल्म में अलग-अलग सामाजिक वर्गों और व्यक्तिगत मानसिकताओं के टकराव को दिखाने की कोशिश की गई है, लेकिन यह सब बिना किसी गहराई के किया गया है। एक तरफ नोएडा से आए एक महत्वाकांक्षी, पढ़ाई में होशियार लड़के को दिखाया गया है, जो अपने करियर को लेकर गंभीर है, वहीं दूसरी तरफ एक “अमीर लेकिन अकेली” लड़की है, जिसके माता-पिता उसे प्यार तो करते हैं, लेकिन एक शर्तों से बंधे दुलार के साथ।

इब्राहिम और खुशी की केमिस्ट्री फीकी, कहानी में मौलिकता की कमी
इब्राहिम अली खान और खुशी कपूर फिल्म में अपने युवा आकर्षण और ऊर्जा से कहानी को जीवंत बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब तक पटकथा में दम न हो, कलाकार चाहकर भी बहुत ज्यादा नहीं कर सकते। इब्राहिम का किरदार एक गंभीर, महत्वाकांक्षी लड़के का है, लेकिन उनके अभिनय में गहराई की कमी दिखती है। खुशी कपूर का किरदार एक चुलबुली लेकिन अंतर्मुखी लड़की का है, लेकिन वह अपने प्रदर्शन में कोई नयापन नहीं ला पातीं।

फिल्म की पटकथा कई पुरानी फिल्मों से प्रेरित (या कहें कि कॉपी) लगती है। इसमें करण जौहर की शुरुआती ब्लॉकबस्टर फिल्मों जैसे कुछ कुछ होता है और कभी खुशी कभी ग़म के तत्व डाले गए हैं, लेकिन आधुनिक सोशल मीडिया की दुनिया के अनुसार थोड़ा अपडेट किया गया है। फिर भी, मौलिकता (originality) का अभाव इसे Gen Z दर्शकों के लिए भी उबाऊ बना सकता है।

फिल्म का हास्य और भावनात्मक पक्ष प्रभावहीन
रोमांटिक-कॉमेडी फिल्मों की सबसे बड़ी ताकत उनकी संवाद अदायगी और हास्य (comedy timing) होती है, लेकिन ‘नादानियां’ इस मोर्चे पर पूरी तरह असफल रहती है। कई संवाद जबरदस्ती ठूंसे हुए लगते हैं, और जिन सीन्स को मज़ेदार बनाया गया है, वे नकली और ज़बरदस्ती के लगते हैं।

भावनात्मक रूप से भी फिल्म गहराई में जाने की कोशिश नहीं करती। अलू-गोभी बनाम स्क्विड इंक पास्ता जैसी सतही तुलना करके सामाजिक वर्गों का फर्क दिखाने की कोशिश की गई है, लेकिन यह ज़्यादा प्रभावी नहीं बन पाती। परिवार, दोस्ती और आत्म-खोज जैसे विषयों को हल्के-फुल्के अंदाज़ में पेश किया गया है, लेकिन इनमें वास्तविकता की कमी महसूस होती है।

निर्देशन और तकनीकी पक्ष
शौना गौतम का निर्देशन अच्छी प्रोडक्शन वैल्यूज़ (production values) के बावजूद कमजोर लगता है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और सेट डिज़ाइन शानदार हैं, लेकिन जब कहानी में दम ही न हो, तो बाहरी चमक-दमक किसी काम की नहीं होती। बैकग्राउंड म्यूजिक और गानों में भी कुछ खास नया नहीं है।

क्या यह फिल्म देखने लायक है?
✔️ अगर आप हल्की-फुल्की, बिना दिमाग लगाए देखने वाली रोमांटिक-कॉमेडी फिल्में पसंद करते हैं, तो इसे एक बार देख सकते हैं।
❌ लेकिन अगर आप मौलिकता, गहरी कहानी, या बेहतरीन अभिनय की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म आपको निराश कर सकती है।

रेटिंग: ⭐⭐ (2/5)

‘नादानियां’ एक चमकीली लेकिन खोखली फिल्म है, जो कुछ पलों के लिए हल्की मनोरंजन देती है, लेकिन कोई ठोस छाप छोड़ने में नाकाम रहती है। इब्राहिम अली खान और खुशी कपूर की मेहनत को सराहा जा सकता है, लेकिन कमजोर पटकथा उनके प्रदर्शन को फीका कर देती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top