“निकोलस पूरन का संन्यास: वेस्टइंडीज के टी20 किंग ने छोड़ा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट”(Nicholas Pooran’s Retirement: West Indies’ T20 King Bids Farewell to International Cricket)
निकोलस पूरन ने 29 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास लिया, फैंस को झटका
वेस्टइंडीज के पूर्व सफेद गेंद कप्तान और दुनिया के बेहतरीन टी20 बल्लेबाजों में शुमार निकोलस पूरन ने महज 29 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है। पूरन के इस फैसले ने क्रिकेट जगत को चौंका दिया है, क्योंकि कुछ ही महीनों पहले उन्होंने अपने 100वें टी20 मैच में कहा था कि वे 100 और टी20 अंतरराष्ट्रीय खेलने की उम्मीद रखते हैं। लेकिन अब उन्होंने सोशल मीडिया के ज़रिए अपने अंतरराष्ट्रीय करियर पर विराम लगाने का ऐलान कर दिया है।
पूरन ने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा, “लंबे विचार-विमर्श और आत्ममंथन के बाद मैंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने का निर्णय लिया है। यह खेल हमें बहुत कुछ देता है – खुशी, उद्देश्य, यादगार लम्हे और अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का गर्व। वेस्टइंडीज की मैरून जर्सी पहनना, राष्ट्रगान के वक्त खड़े होना और हर बार मैदान पर अपना सब कुछ देना – इन भावनाओं को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है।”
पूरन ने आगे लिखा, “टीम की कप्तानी करना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य रहा है। फैंस, मेरे परिवार, दोस्तों और साथियों – आप सभी का समर्थन मेरे लिए अमूल्य रहा। यह अंतरराष्ट्रीय अध्याय भले ही समाप्त हो रहा है, लेकिन वेस्टइंडीज क्रिकेट के लिए मेरा प्रेम कभी नहीं खत्म होगा।”
पूरन का करियर – आंकड़ों में बेमिसाल
निकोलस पूरन ने अपने करियर में कुल 61 वनडे और 106 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले।
वनडे में उन्होंने 1983 रन बनाए, जिसमें 3 शतक और 11 अर्धशतक शामिल हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर 118 रहा और औसत 39.66 का रहा।
टी20 अंतरराष्ट्रीय में पूरन ने 2275 रन बनाए, जो वेस्टइंडीज के लिए सबसे ज्यादा टी20 रन हैं। उनका स्ट्राइक रेट 136.39 का रहा, जिसमें 13 अर्धशतक और 149 छक्के शामिल हैं।
विकेटकीपिंग में भी पूरन ने कमाल किया है – टी20 में 63 कैच और 8 स्टंपिंग्स दर्ज हैं।
उनका आखिरी वनडे जुलाई 2023 में श्रीलंका के खिलाफ और आखिरी टी20 दिसंबर 2024 में बांग्लादेश के खिलाफ हुआ था। इसके बाद उन्होंने फ्रेंचाइज़ी क्रिकेट पर पूरा ध्यान देना शुरू कर दिया था।
फ्रेंचाइज़ी क्रिकेट की ओर झुकाव और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की चिंता
निकोलस पूरन का यह फैसला ऐसे समय आया है जब विश्व क्रिकेट में फ्रेंचाइज़ी लीग्स का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। आईपीएल 2025 के पहले हाफ में लखनऊ सुपर जायंट्स के लिए पूरन का विस्फोटक प्रदर्शन क्रिकेट जगत में चर्चा का विषय बना रहा। उन्होंने यह दिखा दिया कि वह आज के दौर के सबसे खतरनाक फिनिशर्स में से एक हैं।
हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के हेनरिक क्लासेन ने भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया था, और उससे पहले भारत के रोहित शर्मा और विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया। ग्लेन मैक्सवेल ने भी वनडे क्रिकेट से हटने का फैसला लिया ताकि वह 2026 टी20 वर्ल्ड कप पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
क्लासेन ने कहा था कि उन्हें अब अपने खेल या टीम के प्रदर्शन से कोई खास फर्क नहीं पड़ता, और वह इसका आनंद नहीं ले पा रहे थे। कुछ ऐसा ही वर्तमान क्रिकेट परिवेश कई खिलाड़ियों को महसूस हो रहा है – मानसिक दबाव, लगातार यात्रा और व्यस्त शेड्यूल ने खिलाड़ियों को सीमित प्रारूपों और फ्रेंचाइज़ी लीग्स तक सीमित रहने पर मजबूर कर दिया है।
निकोलस पूरन: एक शानदार करियर की झलक
पूरन का अंतरराष्ट्रीय करियर 2016 में शुरू हुआ था जब उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला टी20 खेला था। इसके बाद उन्होंने 2019 में इंग्लैंड के खिलाफ वनडे डेब्यू किया और जल्द ही वेस्टइंडीज टीम के अहम खिलाड़ी बन गए। 2022-23 के दौरान उन्होंने टीम की कप्तानी भी की।
उनकी बैटिंग शैली हमेशा से आक्रामक रही है। वह मैदान के किसी भी कोने में शॉट मारने में सक्षम हैं और टी20 क्रिकेट में उनका स्ट्राइक रेट इस बात की गवाही देता है। वेस्टइंडीज के टी20 इतिहास में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी के तौर पर उन्होंने खुद को अमर कर लिया है।
क्या यह एक चेतावनी संकेत है?
पूरन का संन्यास क्रिकेट प्रेमियों और क्रिकेट बोर्ड्स दोनों के लिए एक चेतावनी की तरह देखा जा रहा है। जब इतने प्रतिभाशाली और युवा खिलाड़ी अपने करियर के चरम पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेते हैं, तो सवाल उठते हैं – क्या अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की चमक फीकी पड़ रही है? क्या खिलाड़ियों को पर्याप्त मानसिक और शारीरिक सहयोग नहीं मिल पा रहा?
आज खिलाड़ी के लिए यह तय करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है कि वह देश का प्रतिनिधित्व करे या अपनी आर्थिक सुरक्षा को प्राथमिकता दे। जहां एक ओर फ्रेंचाइज़ी लीग्स उन्हें मोटा भुगतान और सीमित समय में खेलने का अवसर देती हैं, वहीं अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट लंबी यात्राएं, अधिक दबाव और अपेक्षाएं लेकर आता है।
निकोलस पूरन का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से जाना न केवल वेस्टइंडीज क्रिकेट के लिए बड़ा झटका है, बल्कि यह वैश्विक क्रिकेट पर भी असर डालने वाला कदम है। उनके पास अभी कई सालों का खेल बाकी था, लेकिन उनका यह फैसला मौजूदा क्रिकेट संरचना की हकीकत को उजागर करता है। पूरन ने अपने खेल से लाखों दिल जीते हैं और अब वे फ्रेंचाइज़ी क्रिकेट में अपना जादू जारी रखेंगे।
उनकी विदाई ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है – क्या हमें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के भविष्य को लेकर चिंतित होना चाहिए?